सभासदस्यता एवं लाभ
‘रामनाम’ और इसके साथ ही साथ अन्य जप लिखना ही इस अनोखी बैंक का भक्तिचलन है। कम से कम एक बही लिखकर जमा करने पर इस बैंक की सदस्यता पाई जा सकती है। सदस्य बनने पर प्रत्येक श्रद्धावान को एक पासबुक दिया जाता है।
सद्गुरु श्री अनिरुद्ध (बापू) कहते हैं कि, “श्रद्धावान को जब संकट की घड़ी में मदद की, आधार की वास्तव में जरूरत होती है, तब सद्गुरुतत्त्व, वह परमतत्व उसे इस ’भक्ति बैंक’ से आवश्यकता अनुसार सहायता निश्चितरूप से प्रदान करेंगे।” जिसका उसके सद्गुरु पर जितना प्रेम है उसे उतने प्रमाण में भक्तिरुपी ब्याज सहायता स्वरूप प्राप्त होता है।
बैंक के कामकाज का वर्ष अनिरुद्ध पूर्णिमा (कार्तिक पूर्णिमा) से अनिरुद्ध पूर्णिमा (कार्तिक पूर्णिमा) तक है। सभी ‘सद्गुरु अनिरुद्ध उपासना केन्द्र’ इस बैंक की शाखाएँ हैं। यह बैंक युनिवर्सल होने के कारण श्रद्धावान अपनी लिखकर पूरी की गई बही किसी भी शाखा में जमा करा सकते हैं।
हर किसी को अपनी बही स्वयं ही लिखकर पूर्ण करनी होती है। रामनाम बही के पहले पन्ने पर (अर्पण पत्रिका पर) अपना पूरा नाम, खाता क्रमांक तथा बही किसके लिए लिखी गई है यह जानकारी होती है। श्रद्धावानों द्वारा इस तरह जमा की गई प्रत्येक बही के पहले पन्ने (अर्पण पत्रिकाएं) हर महीने की पूर्णिमा के दिन अथवा एकादशी के दिन एकसाथ पूजे जाते हैं।
एक वर्ष में श्रद्धावानों द्वारा कम से कम १८ बहियाँ जमा किए जाने पर उन्हें उस वर्ष के लिए बैंक की सदस्यता प्रदान की जाती है। खाता खोलने के दिन से लेकर पहले पाँच वर्षों में १५० बहियाँ जमा करने पर श्रद्धावान बैंक का आजीवन सदस्य बन जाता है। बही लिखनेवाले श्रद्धावान द्वारा निश्चित संख्या में बहियां जमा कराने पर विशिष्ठ लाभ प्राप्त होते हैं। श्रद्धावानों द्वारा जमा की गई इन रामनाम बहियों से ही गणेशमूर्तियां एवं सच्चिदानंद पादुकाएं बनाई जाती हैं। इसीलिए यह ‘अनिरुद्धाज् युनिवर्सल बैंक ऑफ रामनाम’ भक्ति के पवित्र साधन के साथ साथ प्रत्यक्ष जीवन में अपने इर्दगिर्द पर्यावरण की सुरक्षा में भी महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान करता है।
सद्गुरु श्री अनिरुद्ध द्वारा २००५ में शुरु की गई इस अनोखी बैंक के खाताधारक बनकर आज की तारीख में लाखों श्रद्धावान भक्तिमार्ग की सहज, आसान यात्रा का आनंद उठा रहे हैं
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