रामनाम बही एवं महत्त्व

‘रामनाम बही’ २२० पन्नों की है, जो भक्तों को आसानी से भगवत् नाम, गुरुनाम लिखने के साथ साथ नाम-उच्चारण का भी सुनहरा अवसर प्रदान करती है। इस बही के पहले १०८ पन्नों पर ‘राम’ नाम लिखना होता है। अगले हर २८ पन्नों पर क्रमश: ’श्री राम जय राम जय जय राम’, ‘कृष्ण’, ‘दत्तगुरु’ और ‘जय जय अनिरुद्ध हरि’ यह मंत्र लिखना होता है। रामनाम बही के प्रत्येक पन्ने पर भक्तिमार्ग के अग्रणी, प्रभु श्रीरामजी के दास ‘हनुमानजी’ की साक्षी से प्रत्येक नाम लिखा जाता है।

श्री हनुमानजी के आकृतिबंध में ‘राम’ नाम लिखने का महत्त्व बहुत ही अनोखा है। जब वानरसैनिकों को अपनी दुलारी जानकी माता को लंका से लाने के लिए ‘श्रीरामेश्वर से लंका’ तक ऐसा अभेद्य सेतु बनाना था तब स्थापत्य के अत्युच्च आचार्य भौम ऋषि से शिक्षा प्राप्त किए हुए नल और नील नामक वानरवीर इस सेतु को बनाने का कार्य आरंभ करते हैं। परन्तु कार्य की व्यापकता एवं दुर्गमता के मद्देनजर श्री हनुमानजी तुरंत आगे बढ़कर समुद्र में ड़ाले जानेवाले प्रत्येक पाषाण पर स्वयं ‘श्रीराम’ नाम लिखने लगते हैं। श्रीरामनाम से निर्जीव एवं भारी भरकम पाषाण भी पानी में डूबते नहीं बल्कि, तैरते हैं और उनके समुदाय से समुद्र पर सेतु बांधा जाता है। श्रद्धावान जब रामनाम बही लिख रहे होते हैं तब उनकी भी जन्मजन्मांतर की यात्रा में से अनेक सुंदर सेतु इसी तरह बडी सहजता से श्री हनुमानजी बँधवा लेते हैं, ऐसी श्रद्धावानों की भावना है।

इस रामनाम बैंक के महत्व के बारे में सद्गुरु श्री अनिरुद्ध कहते हैं, ‘अनिरुद्धाज्‌ युनिवर्सल बैंक ऑफ रामनाम’ भगवान के नामस्मरण का एक महामार्ग है जो सीधेसादे श्रद्धावान को भी सुखी जीवन की राह पर ले जाता है, उसे एक मजबूत आधार देता है।

इस तरह से जप लिखने का करोडों गुना लाभ सभी श्रद्धावान मित्रों को भी मिले इस तडप के कारण ही सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी ने यह रामनाम बही दी है।

रामनाम बही के पाँचों मंत्र जागृत हैं, रसमय हैं। हनुमानजी चिरंजीव हैं और वे निरंतर रामनाम जपते रहते हैं। जब हम रामनाम का उच्चारण करते हैं तब वह रामनाम अपनेआप हनुमानजी के उच्चारण में समाविष्ट हो जाता है। संक्षिप्त में, रामनाम बही लिखनेवाले हम अकेले नहीं होते बल्कि, यह नाम ‘जो’ निरंतर उच्चार रहे हैं उन हनुमानजी से हम सहजता से जुड़ जाते हैं, यह महत्त्वपूर्ण लाभ रामनाम बही लिखने से हमें मिलता है।

कुछ विशेष अवसरों पर अर्थात जन्मदिन, शादी -ब्याह के निमित्त अथवा अपने आप्तों के सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति हेतु उनके नाम बही लिखकर जमा की जा सकती है। सद्‍गुरु ने इस रामनाम बैंक की ऐसी रचना कर रखी है कि, जो श्रद्धावान यह बही लिखता है उसे भी तथा जिसके नाम यह बही लिखी जाती है उसे भी इसका लाभ होगा। श्रद्धावानों की ऐसी भावना है कि, मृत व्यक्ति के नाम यदि रामनाम बही लिखी जाती है तो उस मृत व्यक्ति को आगे अधिक अच्छी गति प्राप्त होती है।

रामनाम बही लिखते समय लिखनेवाले के हाथों से नवविधा भक्ति में से श्रेष्ठ ‘श्रवण’ भक्ति होती ही है क्योंकि, नाम लिखते समय आँखों से वह पढ़ा भी जायेगा, मन से जप उच्चारा जाएगा और साथ ही साथ उसका सहज ही श्रवण भी होगा, इसीलिए रामनाम बही सहज भक्ति, ध्यान का पवित्र साधन है।

 

रामनाम बही – जप संख्या

जाप जप संख्या
राम
श्री राम जय राम जय जय राम
कृष्ण
दत्तगुरु
जय जय अनिरुद्ध हरि


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